Hindi Varnamala (हिन्दी वर्णमाला) :- वर्णों के व्यवस्थित समूह को ‘वर्णमाला‘ कहते है।
व्यंजन (Consonant):- ऐसे वर्ण जो बिना किसी स्वरों की सहायता के बिना उच्चारण नहीं होते हैं और जिनके उच्चारण में वायु या स्वास हमारे मुख से अबाध गति से बाहर नहीं निकलती है बल्कि घर्षण और रुकावट के साथ निकलती है उन्हें व्यंजन कहते हैं।
अगर आप व्यंजनों का उच्चारण करने पे ध्यान देंगे तो पाएंगे की इनका उच्चारण हमेशा स्वर की सहायता से ही किया जाता है अर्थात् इनके उच्चारण में स्वर वर्ण भी समिलित होते हैं। क से लेकर ज्ञ तक के सभी वर्ण व्यंजन कहलाते हैं।
उदाहरन के लिए अगर हम “क” लिखते हैं तो भले ही ये देखने में स्वतंत्र वर्ण या अक्षंर लग रहा है पर इसके उच्चारण में “अ” वर्ण छुपा है यानि क। क+अ। इसी प्रकार से, ख। ख+अ, ग। ग+अ आदि।
व्यंजन को वर्गो में लिखा जाता है, ऊपर दी गयी वर्णमाला चार्ट (Hindi Alphabets Chart) में भी आप देखंगे तो पाएंगे की इन्हे अलग अलग वर्ग में लिखा गया है हलाकि चार्ट में वर्गो का नाम तो नहीं लिखा गया है इसलिए इसके बारे में यहाँ देख लीजिये-
Hindi Varnamala ( हिन्दी वर्णमाला )
- क वर्ग – क , ख , ग , घ , डं
- च वर्ग – च , छ , ज , झ , ञ
- ट वर्ग – ट , ठ , ड , ढ , ण , ड़ , ढ़
- त वर्ग – त , थ , द , ध , न
- प वर्ग – प , फ , ब , भ , म
- अंतः स्थल वर्ग – य , र , ल , व
- उष्म वर्ग – श , ष , स , ह
- संयुक्त वर्ग – क्ष , त्र , ज्ञ , श्र ,
- गृहीत वर्ग – ज़ , फ़ ,ऑ
स्वर :- जिन वर्णों का उच्चारण बिना किसी अवरोध के तथा बिना किसी दूसरे वर्ण की सहायता से होता है, उन्हें स्वर कहते हैं।
ह्रस्व स्वर :- जिन स्वरों के उच्चारण में कम समय लगता है, उन्हें ह्रस्व स्वर कहते हैं।
दीर्घ स्वर :- जिन स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व स्वरों से अधिक समय लगता है, उन्हें दीर्घ स्वर कहते हैं।
- ह्रस्व स्वर हैं- अ, इ, उ, ऋ
- मूल स्वर हैं – अ, इ, उ, ऋ
- दीर्घ स्वर हैं- आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ,
- दीर्घ संधि स्वर हैं – आ, ई,ऊ
- संयुक्त स्वर हैं- ए, ऐ, ओ, औ
- आगत स्वर हैं- ऑ
- अग्र स्वर हैं – इ, ई, ए, ऐ
- मध्य स्वर- अ
- पश्च स्वर- आ, उ, ऊ, ओ, ऑ
- संवृत स्वर हैं – इ, ई, उ, ऊ
- अर्द्ध संवृत हैं – ए, ओ
- विवृत हैं – आ, ऐ
- अर्द्ध विवृत हैं – ए, अ, ओ, ऑ
- कुल व्यंजनों की संख्या- (41)
- मूल व्यंजनों की संख्या है- (33)
- स्पर्श व्यंजनों की संख्या- (25)
- उत्क्षिप्त व्यंजनों की संख्या- (2)
- अंतःस्थ व्यंजनों की संख्या- (4)
- ऊष्म व्यंजनों की संख्या – (4)
- आगत व्यंजनों की संख्या – (2)
- संयुक्त व्यंजनों की संख्या- (4)
- संयुक्त व्यंजन-क्ष (क् + ष), त्र ( + र), ज्ञ (ज् + ञ), श्र (श् + र)
- क-वर्ग ध्वनियाँ हैं – क्, ख, ग, घ, ङ
- च-वर्ग ध्वनियाँ हैं – च्, छ, ज, झ, ञ्
- ट-वर्ग ध्वनियाँ हैं – ट, ठ, ड्, द्, ण् (ड्, द्)
- त-वर्ग ध्वनियाँ हैं-त्, थ्, द्,ध्, न्
- प-वर्ग ध्वनियाँ हैं- प्, फ, ब्, भ्, म्
- अन्तःस्थ व्यंजन हैं- य, र, ल, व
- ऊष्म हैं- श, ष, स, ह
- आगत व्यंजन हैं-ज़ फ़
- संयुक्त व्यंजन है-क्ष, त्र, ज्ञ, श्र
- अर्धस्वर हैं- य,व
- लुंठित व्यंजन हैं – र
- पार्श्विक व्यंजन हैं-ल
- ऊष्म-संघर्षी व्यंजन हैं-स, श, ष, ह
- उत्क्षिप्त व्यंजन हैं- ड, ढ़
- अघोष व्यंजन हैं- प्रत्येक वर्ग के प्रथम और द्वितीय वर्ण तथा फ़, श, ष,स
- सघोष व्यंजन हैं- प्रत्येक वर्ग के तृतीय, चतुर्थ, पंचम वर्ण तथा इ, द, ज़, य, र, ल, व, ह (एवं सभी स्वर सघोष हैं।)
- अल्पप्राण व्यंजन हैं- प्रत्येक वर्ग में प्रथम, तृतीय, पंचम वर्ण तथा अन्तःस्थ वर्ण (य, र, ल, व)
- महाप्राण व्यंजन हैं- प्रत्येक वर्ग के द्वितीय व चतुर्थ वर्ण तथा ऊष्म वर्ण (श, ष, स, ह)
- नासिक्य व्यंजन हैं-ङ, ञ्, ण, न्, म्
- कठ्य वर्ण हैं- अ, आ, अः, क, ख, ग, घ, ङ, ह।
- तालव्य व्यंजन हैं- च्, छ्, ज, झ, ञ्, श्, य्
- मर्धन्य व्यंजन है-ट्, ठ, ड्, द्, (ढ़), ण, ष
- दत्य व्यंजन हैं- त्, थ्, द, ध, न्
- ओष्ठ्य व्यंजन हैं- प, फ (फ़), ब्, भ्, म्
- दंत्योष्ठ्य व्यंजन हैं- व
- अयोगवाह- अनुस्वार (-), विसर्ग (:)
- स्पर्श रहित/काकल्य ध्वनि/ स्वरयंत्रामुखी/घोष ध्वनि/ऊष्म संघर्ष ध्वनि हैं– ‘ह्’

Hindi Varnamala
वर्ण विचार
वर्ण :- भाषा की सबसे छोटी इकाई ध्वनि हैं। इस ध्वनि को वर्ण कहते हैं।
स्वर:- जिन वर्णे के उच्चारण में दूसरे वर्णो की साहायता की आवश्यकता नही होती, स्वर कहते हैं।
- स्वर :अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ (11)
- अनुस्वर : अं
- अनुनासिक : अँ
- विसर्ग: अः
- आगत ध्वनियाँ : अर्ध चंद्र (); नुक़्ता (.)
अनुस्वार और अनुनासिक में अंतर
अनुस्वार :- (i) अनुस्वार के उच्चारण में नाक से अधिक साँस निकलती है और मुख से कम, जैसे-अंग, अंक, अंश आदि।
(ii) अनुस्वार की ध्वनि प्रकट करने के लिए वर्ण पर बिन्दु लगाया जाता है। क्योंकि यह एक व्यंजन ध्वनि है।
(iii) तत्सम शब्दों में अनुस्वार लगता है, जैसे-अंगुष्ठ, दंत, अंत्र। आदित्य : वस्तुनि
अनुनासिक :- (i) अनुनासिक के उच्चारण में नाक से बहुत कम साँस निकलती है| और मुख से अधिक, जैसे-आँत, गाँव, चिड़ियाँ आदि।
(ii) अनुनासिक स्वरों पर चन्द्रबिन्दु लगता है।
(iii) तद्भव रूपों में चन्द्रबिन्दु लगता है, जैसे-शृंगठा, दाँत, आँत, गाँव, आँगन, साँचा, आँख, अँगना।
स्वरतंत्रियों में उत्पन्न कंपन के आधार पर
- अघोष – इन ध्वनियों के उच्चारण में स्वरतंत्रियों में कंपन नहीं होता है। (प्रत्येक वर्ग के प्रथम और द्वितीय वर्ण) तथा फ़, श, ष, स
अघोष हैं। - सघोष – इन ध्वनियों के उच्चारण में स्वरतंत्रियों में कंपन होता है। (प्रत्येक वर्ग के तृतीय, चतुर्थ तथा पंचम वर्ण) तथा ड, ढ, ज़, य,
ल, व, ह (एवं सभी स्वर) सघोष हैं ।
श्वास (प्राण) की मात्रा के आधार पर
- अल्पप्राण :- प्राण का अर्थ ‘वायु’। इनके उच्चारण में फेफड़ों से बाहर निकलने वाली वायु की मात्रा कम होती है। (प्रत्येक वर्ग में प्रथम,
तृतीय,पंचम वर्ण तथा य, र, ल, व)।(अन्तःस्थ वर्ण) - महाप्राण :- इनके उच्चारण में फेफड़ों से बाहर निकलने वाली वायु की मात्रा अपेक्षाकृत अधिक होती है (प्रत्येक वर्ग के द्वितीय और चतुर्थ वर्ण) तथा श,ष,सह,(ऊष्म वर्ण)।
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