Samas In Hindi :-हिन्दी में यौगिक शब्दो का निर्माण चार प्रकार से किया जाता स्पष्ट है कि नए शब्दों के निर्माण-
1.संधि द्वारा
2.समास द्वारा
3.उपसर्ग द्वारा
4.प्रत्यय द्वारा
समास की परिभाषा (Samas In Hindi )- परस्पर सम्बन्ध रखने वाले दो या दो से अधिक पद मिलकर जब एक स्वतंत्र और सार्थक शब्द बनाते हैं, तब उस विकार रहित मन को समास कहते हैं.
जैसे- राजपुत्र में दो पद हैं राजा, पुत्र. इसका विग्रह होगा राजा का पुत्र और दोनों से मिलाकर समास बनेगा राजपुत्र.
संधि और समास का अन्तर
संधि द्वारा भी नए शब्दों का निर्माण होता है और समास द्वारा भी, किन्तु इन दोनों में पर्याप्त अन्तर है, यथा-
1. संधि में दो ध्वनियों का मेल होता है, जबकि समाज में दो पदों का.
2. समास में दोनों पदों के बीच की विभक्तियाँ (कारक चिह्नों) का लोप कर दिया जाता है, जबकि संधि में ऐसा नहीं होता.
3. सामासिक पद (समास) को तोड़ना ‘समास विग्रह’ कहा जाता है, जबकि संधि को तोड़ना ‘संधि-विच्छेद’ कहा जाता है.
Samas In Hindi | समास
समासों के भेद ( Samas Ke Bhed )
हिन्दी में समास छः प्रकार के बताए गए हैं-
1. अव्ययीभाव सामास
2. तत्पुरुष सामास
3. कर्मधारय सामास
4.बहुव्रीहि सामास
5. व्दिगु समास
6.व्दन्द समास
संस्कृत में पदों की प्रधानता के आधार पर केवल चार समासों की परिकल्पना की गई है-
1.प्रथम पद प्रधान -अव्ययीभाव
2. द्वितीय पद प्रधान-तत्पुरुष समास
3. दोनों पद प्रधान-व्दन्द समास
4. अन्य पद प्रधान-बहुव्रीहि समास
कर्मधारय और द्विगु को वहाँ अलग से समास न मानकर तत्पुरुष में ही समाविष्ट किया गया है.
1. अव्ययीभाव समास (Adverbial Compound)-इसकी प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
1. इस समास में पहला पद (पूर्व पद) प्रधान होता है.
2. दोनों पद मिलकर ‘अव्यय’ की भाँति प्रयुक्त होते हैं.
3. अव्ययीभाव समास जिन दो पदों से मिलकर निर्मित होता हैउनका क्रम इस प्रकार हो सकता है-
(i) पहला पद संज्ञा, दूसरा अव्यय, किन्तु पूरा पद अव्यययथा-मरणपर्यन्त.
(ii) दोनों पद संज्ञा किन्तु समस्त पद अव्यय, यथा-कानोंकान,
(iii) पहला पद अव्यय, दूसरा पद संज्ञा, किन्तु समस्त पद अव्यय, यथा-यथाशक्ति.
(iv) दोनों पद अव्यय तथा समस्त पद भी अव्यय, यथा-बीचोंबीच.
4. अव्ययीभाव समास में पहला पद प्रायः यथा, यावत्, भर, हर, प्रति, आ, में से कोई एक होता है.
5. द्विरुक्त पद प्रायः अव्ययीभाव समास में होते हैं, यथा-घर-घर, पल-पल, तब-तब.
अव्ययीभाव समास के उदाहरण
सामासिक पद विग्रह
यथासम्भव=जैसा सम्भव हो
यथास्थान =निर्धारित स्थान पर
यथाशक्ति=शक्ति के अनुसार
यथाक्रम=क्रम के अनुसार
यथोचित=जैसा उचित हो
अत्यन्त=अन्त से भी अधिक
प्रतिदिन=प्रत्येक दिन
प्रतिलिपि=लिखे हुए की नकल
अत्याचार=आचार का अतिक्रमण
नीरव=रव (शोर) से रहित
नीरोग=रोग से रहित
अतिरिक्त=रिक्त से अधिक
अत्यधिक=अधिक से भी अधिक
भरपेट=पेट भरके
हाथोहाथ=हाथ ही हाथ में
अनुरूप=रूप के योग्य
2. तत्पुरुष समास (Determinative Compound)-द्वितीयपद प्रधान समास को तत्पुरुष कहते हैं. सामान्यतः इस समास में
पहला पद विशेषण और दूसरा पद विशेष्य होता है. तत्पुरुष समासके विग्रह में विभक्ति चिह्नों का लोप हो जाता है. जिस विभक्ति चिह्न
का लोप होता है, उसी के आधार पर तत्पुरुष का नामकरण करदिया जाता है. जैसे-यश प्राप्त-यश को प्राप्त यहाँ ‘को’ का लोपहै अतः कर्म तत्पुरुष, हस्तलिखित-हाथ से लिखा गया. यहाँ ‘से’ (कद्वारा) का लोप होने के कारण तत्पुरुष, रोगमुक्त-रोग से मुक्त मेंसे (अपाय) का लोप होने से अपादान और राजपुत्र राजा का पुत्र में’का’ का लोप होने से सम्बन्ध तत्पुरुष माना जाएगा.
इस समास के मुख्यतः आठ भेद होते हैं किंतु विग्रह करने की वजह से कर्ता और सम्बोधन दो भेदों को लुप्त रखा गया है। इसलिए विभक्तियों के अनुसार तत्पुरुष समास के छ भेद होते हैं –
(क) कर्म तत्पुरुष समास
(ख) करण तत्पुरुष समास
(ग) सम्प्रदान तत्पुरुष समास
(घ) अपादान तत्पुरुष समास
(ङ) सम्बन्ध तत्पुरुष समास
(च) अधिकरण तत्पुरुष समास
(क) कर्म तत्पुरुष समास-कर्म तत्पुरुष समास में कर्म के कारक चिन्ह (विभक्ति) ‘को‘ का लोप हो जाता है। जैसे-
स्वर्गप्राप्त | स्वर्ग को प्राप्त |
शरणागत | शरण को आया हुआ |
चिड़ीमार | चिड़ियों को मारनेवाला |
गगनचुंबी | गगन को चूमने वाला |
कठफोड़वा | काठ को फोड़ने वाला |
(ख) करण तत्पुरुष समास-करण तत्पुरुष समास में कारण कारक चिन्ह (विभक्ति) ‘से’, ‘के द्वारा’ का लोप हो जाता है। जैसे-
तुलसीकृत | तुलसी द्वारा कृत |
मनचाहा | मन से चाहा |
अकालपीड़ित | अकाल से पीड़ित |
कष्टसाध्य | कष्ट से साध्य |
गुणयुक्त | गुण से युक्त |
(ग) सम्प्रदान तत्पुरुष समास-सम्प्रदान तत्पुरुष समास में कर्म के कारक चिन्ह (विभक्ति) ‘के लिए‘ का लोप हो जाता है। जैसे-
जनहित | जन के लिए हित |
पुत्रशोक | पुत्र के लिए शोक |
राहखर्च | राह के लिए खर्च |
हवन-सामग्री | हवन के लिए सामग्री |
देवालय | देव के लिए आलय |
(घ) अपादान तत्पुरुष समास-अपादान तत्पुरुष समास में कर्म के कारक चिन्ह (विभक्ति) ‘से’ (अलग होने के अर्थ में) का लोप हो जाता है। जैसे-
गुणरहित | गुण से रहित |
नेत्रहीन | नेत्र से हीन |
देशनिकाला | देश से निकाला |
धर्मविमुख | धर्म से विमुख |
जन्मान्ध | जन्म से अन्धा |
(ङ) सम्बन्ध तत्पुरुष समास-सम्बन्ध तत्पुरुष समास में कर्म के कारक चिन्ह (विभक्ति) ‘का’ ‘की’ ‘के’ का लोप हो जाता है। जैसे-
सिरदर्द | सिर का दर्द |
सूर्योदय | सूर्य का उदय |
जलधारा | जल की धारा |
पशुबलि | पशु की बलि |
शास्त्रानुकूल | शास्त्र के अनुकूल |
(च) अधिकरण तत्पुरुष समास-अधिकरण तत्पुरुष समास में कर्म के कारक चिन्ह (विभक्ति) ‘में’ ‘पर’ का लोप हो जाता है। जैसे-
जलमग्न | जल में मग्न |
कविराज | कवियों में राजा |
वनवास | वन में वास |
घुड़सवार | घोड़े पर सवार |
आपबीती | अपने पर बीती |
3. कर्मधारय सामास:- कर्मधारय सामस के दोनों पदों में विशेष्य-विशेषण अथवा उपमान सम्बध होता हैं-
उदाहरण-
महादेव | महान है जो देव |
चरणकमल | कमल के समान चरण |
नीलगगन | नीला है जो गगन |
चन्द्रमुख | चन्द्र जैसा मुख |
पीताम्बर | पीत है जो अम्बर |
कर्मधारय तत्पुरुष के चार भेद होते हैं।
(क) विशेषणपूर्वपद, (ख) विशेष्यपूर्वपद, (ग) विशेषणोभयपद और (घ) विशेष्योभयपद
(क) विशेषणपूर्वपद-
विशेषणपूर्वपद कर्मधारय समास में पहला पद विशेषण होता है। उदाहरण-
छुटभैये | छोटे भैये |
नीलगाय | नीली गाय |
पीताम्बर | पीत अम्बर |
परमेश्वर | परम ईश्वर |
प्रिसखा | प्रिय सखा |
नोट- विशेषण के रूप में यदि पूर्वपद ‘कुत्सित’ हो तो उसके स्थान पर ‘का’ ‘कु’ या ‘कद्’ हो जाता है। जैसे-
कुपुरुष/ कापुरुष | कुत्सित पुरुष |
कदन्न | कुत्सित अन्न |
लेकिन हिंदी के ‘कुपंथ’ या ‘कुघड़ी’ जैसे सामासिक पद हीन या बुरा अर्थ में प्रयुक्त होते हैं, यह ‘प्रादितत्पुरुष समास’ के अंतर्गत माने जाते हैं।
(ख) विशेष्यपूर्वपद-
विशेष्यपूर्वपद कर्मधारय समास में पहला पद विशेष्य होता है। इस प्रकार के सामासिक पद अधिकतर संस्कृत में मिलते है। जैसे-
कुमारी | क्वाँरी लड़की |
श्रमणा | संन्यास ग्रहण की हुई |
कुमारश्रमणा | कुमारी श्रमणा |
(ग) विशेषणोभयपद-
विशेषणोंभयपद कर्मधारय समास में दोनों पद विशेषण होते हैं। परन्तु ध्यान रखना चाहिए कि इसके विग्रह में दोनों पदों के बीच ‘और’ जैसा संयोजक अव्यय न आए, अथार्त दोनों पद विशेषण बने रहें, संज्ञा के रूप स्पष्ट न हो। उदाहरण-
शीतोष्ण | ठंडा-गरम |
भलाबुरा | भला-बुरा |
दोचार | दो-चार |
कृताकृत | किया-बेकिया (अधूरा छोड़ दिया गया) |
नील–पीत | नीला-पीला |
(घ) विशेष्योभयपद-
विशेष्योभयपद कर्मधारय समास में दोनों पद विशेष्य होते हैं। उदाहरण- आमगाछ या आम्रवृक्ष, वायस-दम्पति आदि।
4.बहुव्रीहि सामास :- अन्य पद प्रधान समास को बहुव्रीही सामास कहा जाता है।
उदाहरण-
गजानन-गज के समान है आनन जिसका वह (गणेशजी)
चतुरानन-चार है आनन जिसके वह (ब्रह्माजी)
चतुर्भुज-चार है भुजाएं जिसके वह (विष्णु)
दशानन-दश है आनन जिसके वह (रावण)
दिगम्बर-दिक् (दिशाएँ) हैं अम्बर (वस्त्र) जिसकी वह (शंकर)
मनोज-मन में लेता है जन्म जो, वह (कामदेव)
चक्रपाणि-चक्र है पाणि में जिसके वह (विष्णु)
शैलपुत्री-शैल की है पुत्री जो वह (पार्वती)
राधारमण-राधा के साथ रहते हैं रमण जो वह (श्रीकृष्ण)
विषधर-विष को धारण करता है जो वह (सर्प)
आशुतोष-आशु (शीघ्र) हो जाते हैं तुष्ट जो वह (शंकरजी)
चन्द्रचूड़-चन्द्र है चूड़ (मस्तक) पर जिसके वह (शंकरजी)
मन्मथ-मन को देता है मथ जो वह (कामदेव)
पीताम्बर-पीला है जिसका वस्त्र वह (श्रीकृष्ण)
चन्द्रशेखर-चन्द्र है शिखर (मस्तक) पर जिसके वह (शंकरजी)
पंचानन–पाँच हैं आनन (मुख) जिसके वह (शंकरजी)
5. व्दिगु समास :- द्विगु समास में पूर्वपद संख्यावाचक होता है और कभी-कभी उत्तरपद भी संख्यावाचक होता हुआ देखा जा सकता है। इस समास में प्रयुक्त संख्या किसी समूह को दर्शाती है किसी अर्थ को नहीं |इससे समूह और समाहार का बोध होता है। उसे द्विगु समास कहते हैं।
द्विगु समास के उदाहरण (dvigu samas ke udaharan)
नवग्रह = नौ ग्रहों का समूह
दोपहर = दो पहरों का समाहार
त्रिवेणी = तीन वेणियों का समूह
पंचतन्त्र = पांच तंत्रों का समूह
त्रिलोक =तीन लोकों का समाहार
शताब्दी = सौ अब्दों का समूह
पंसेरी = पांच सेरों का समूह
सतसई = सात सौ पदों का समूह
चौगुनी = चार गुनी
त्रिभुज = तीन भुजाओं का समाहार
6.व्दन्द समास :- इस सामास में दोनों पद प्रधान होते हैं, दोनों पदों के बीच में और या का लोप होता हैं-
द्वन्द समास उदाहरण (dwand samas ka udharan)
जलवायु = जल और वायु
अपना-पराया = अपना या पराया
पाप-पुण्य = पाप और पुण्य
राधा-कृष्ण = राधा और कृष्ण
अन्न-जल = अन्न और जल
नर-नारी =नर और नारी
गुण-दोष =गुण और दोष
देश-विदेश = देश और विदेश
अमीर-गरीब = अमीर और गरीब
द्वन्द समास के भेद (dwand samas ke prakar)
- इतरेतरद्वंद्व समास
- समाहारद्वंद्व समास
- वैकल्पिकद्वंद्व समास
कर्मधारय और बहुव्रीहि समास का अन्तर
समास का निर्धारण समस्त पद का विग्रह करने के आधार पर होता है. कर्मधारय समास में एक पद विशेषण और दूसरा पद विशेष्य (संज्ञा) होता है अथवा एक पद उपमेय और दूसरा पद उपमान होता है, जैसे-
नीलकमल में नील विशेषण है और कमल विशेष्य है अतः यह कर्मधारय का उदाहरण है, जबकि चरण कमल में चरण उपमेय और कमल उपमान है. अतः यह भी कर्मधारय का उदाहरण है. दूसरी ओर बहुव्रीहि समास में समस्त पद किसी विशेषण का कार्य करता है. यथा-चक्रपाणि, चक्र है हाथ में जिसके वह अर्थात् विष्णु.।
द्विगु और बहुब्रीहि का अन्तर
कभी-कभी संख्यावाची शब्दों से प्रारम्भ होने वाले पद में द्विगु समास होता है तो कभी बहुव्रीहि. द्विगु समास में पहला पद संख्यावाची विशेषण होता है तथा समस्त पद एक समूह या समाहार का बोध कराता है, जैसे- त्रिभुवन- तीन लोकों का समूह, सप्तर्षि–सात ऋषियों का समूह, किन्तु बहुव्रीहि समास में ऐसा नहीं होता, यथा-चतुरानन का अर्थ चार हैं आनन जिसके वह अर्थात् ब्रह्माजी होगा न कि चार आननों (मुखों) का समूह.
द्विगु और कर्मधारय का अन्तर
द्विगु समास का पहला पद सदैव संख्यावाचक विशेषण होता है, जबकि कर्मधारय का पहला पद विशेषण तो होता है संख्यावाचक
विशेषण (गिनती) नहीं होता. यथा-
नवरत्न -नौ रत्नों का समूह-द्विगु समास
रक्तोपाल -लाल है जो उत्पल (कमल)-कर्मधारय समास
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